चंद्रमा

हमारे सौरमंडल में कुल आठ ग्रह है। उनमें से कुछ के उपग्रह है तो कुछ के नहीं है। बुध व शुक्र ग्रह के कोई उपग्रह नहीं है। मंगल ग्रह के दो उपग्रह है, फ़ोबोस व डिमोज़। बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्चून के अनेकों उपग्रह है। पृथ्वी का एक मात्र उपग्रह है, चन्द्रमा। सूर्य के बाद चंद्रमा आसमान में सर्वाधिक चमकने वाली वस्तु है । आकार में यह पृथ्वी का एक चौथाई भर है। यह तकरीबन हर सत्ताईस दिवसों में पृथ्वी का चक्कर काटता है। चंद्रमा एक निर्जन पिंड है। वहां ना वायु है और ना ही जल है। दुर्भाग्य से चंद्रमा का अपना कोई चुम्बकीय ढाल भी नहीं है जिससे सौर हमलों से वह अपना बचाव कर सके। हवा, पानी और सुरक्षा यह तीनों ही जीवन के पनपने की बुनियादी जरूरतें है। वायुमंडल के अभाव में सूरज की तपिस सीधे चंद्रमा के धरातल पर पड़ती है इसलिए वहां दिन और रात के तापमान में बड़ा अंतर है । हमारे ग्रह की तरह चंद्रमा की धरती भी विविध भौगोलिक रचनाओं से अटी पड़ी है। इनमें चट्टान, पहाड़, मैदान, क्रेटर आदि प्रमुख है। चंद्रमा की अधिकांश चट्टानें तीन से साढ़े चार अरब वर्ष पुरानी हैं । पृथ्वी व चंद्रमा के परस्पर गुरुत्वाकर्षण कई रोचक प्रभावों को जन्म देते है निश्चित रूप से हमारे समुद्री ज्वार उनमें से प्रमुख है । चंद्रमा अपने सामने पड़ने वाले पृथ्वी के भूभाग को अपनी ओर खींचता है जिससे समुद्र का पानी ऊपर उठता है। पृथ्वी की तुलना में चंद्रमा पर गुरुत्वाकर्षण छठवां भाग मात्र है । अर्थात वहां वस्तु का भार छः गुना कम होता है।



चंद्रमा अपनी धूरी पर भी घूमता है। पर इस घुमाव को पृथ्वी से देख पाना संभव नहीं है। यदि कुछ दिनों तक चंद्रमा को गौर से देखे तो आप पायेंगे कि हमें चन्द्रमा पर सदैव एक सी रचनाएं नजर आती है । इनमें कभी कोई बदलाव नजर नहीं आता है। इसका अर्थ है चन्द्रमा अपना एक निश्चित गोलार्ध ही हमें दिखाता है। अब सवाल उठता है कि आखिर चंद्रमा अपना निश्चित भूभाग ही हमारे सामने क्यों रखता है ? इसका जवाब चन्द्रमा की समकालिक कक्षा में निहित है। समकालिक कक्षा का अर्थ है घूर्णन काल और परिक्रमण काल समान होना। चन्द्रमा अपनी स्वयं की व पृथ्वी की परिक्रमा समान समय में करता है। जिससे चन्द्रमा का एक भाग ही सदा पृथ्वी की ओर रहता है। यह महज संयोग नहीं है बल्कि ज्वारीय प्रभाव का नतीजा है।


विश्व की दो महाशक्तियों अमेरिका व सोवियत रूस के बीच चंद्रमा को जीतने की होड़ कई दशकों तक चली। इसी प्रयास में सोवियत रूस ने साठ के दशक के अंत में सर्वप्रथम चंद्रमा का दौरा किया। उसके अंतरिक्ष यान 'लूना 2' ने चंद्रमा का दौरा किया। चंद्रमा अकेला ऐसा पिंड है जिस पर मानव ने कदम रखा है । चंद्रमा पर मानव पहली बार 20 जुलाई 1969 को उतरा जबकि अंतिम मानव यात्रा दिसम्बर 1972 में हुई। चंद्रमा से चट्टान के नमूने भी धरती पर लाये गये है । अपोलो और लूना कार्यक्रमों द्वारा चट्टानों के करीब चार सौ नमूने धरती पर लाये गये है। यह नमूने आज भी हमें चंद्रमा की विस्तृत जानकारी मुहैया कराते हैं । वैज्ञानिक आज भी इन कीमती नमूनों का अध्ययन कर रहे है । 1994 में 'क्लेमेंटाइन' अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा के धरातल को विस्तृत रूप से प्रतिचित्रित किया है। इसने चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव के करीब गहरे खड्ड में कुछ जलीय बर्फ होने की संभावना भी जताई है ।


चंद्रमा पर इलाके के दो प्राथमिक प्रकार हैं : भारी मात्रा में क्रेटर व बहुत पुरानी उच्चभूमि और अपेक्षाकृत चिकनी व युवा निम्न्भूमि । चन्द्रमा पर नजर आने वाला सबसे बड़ा काला धब्बा निम्न्भूमि है ।






"चांदनी" वास्तव में चंद्रमा की सतह से परावर्तित सूर्य का प्रकाश है । कितना प्रकाश परावर्तित होना है, यह कक्षा में चंद्रमा की अपनी स्थिति पर निर्भर करता है । हम चंद्रमा के केवल उस गोलार्ध को देख पाते है जो सूर्य से प्रकाशित होता है और इस प्रकाशित गोलार्ध के भी केवल उस भाग को देख पाते है जो हमारे सम्मुख होता है । शेष चन्द्रमा हमें दिखाई नहीं पड़ता है। प्रतिदिन चन्द्रमा थोड़ा बढ़ता हुआ नजर आता है । इस प्रकार, प्रतिदिन चन्द्रमा की यह बढोत्तरी कला कहलाती है । चंद्रमा एक नियमित चक्र पर कलाओं में बदलाव करता है । हरेक चक्र पूरा होने के लिए लगभग 29 दिन लेता है । अगर "नव चन्द्रमा" की स्थिति से शुरूआत करें तो चन्द्रमा चार मुख्य चरणों से होकर गुजरता है: प्रथम चतुर्थांस (पहला सप्ताह), पूर्णिमा (दूसरा सप्ताह), तीसरा चतुर्थांस (तीसरा सप्ताह) और नव चंद्रमा (चौथा सप्ताह) ।



अतीत में चन्द्रमा की कक्षा आज की तुलना में बहुत छोटी थी। साथ ही उसकी कक्षीय गति भी तीव्र थी । लेकिन समय के साथ-साथ जैसे जैसे चंद्रमा धीमा होता गया उसकी कक्षा विस्तारित होती गई ( पृथ्वी भी ऊर्जा खोने के साथ-साथ धीमी हो रही है ) । उदाहरण के लिए, एक अरब साल पहले, चंद्रमा पृथ्वी के बहुत करीब था ( 2 लाख किमी ) और पृथ्वी का एक चक्कर लगाने में केवल 20 दिन लेता था । इसके अलावा, बजाय 24 घंटे के एक 'पृथ्वी दिवस' लगभग 18 घंटे लंबा हुआ करता था । जब चाँद पृथ्वी के करीब होता था तब पृथ्वी पर ज्वार भी बहुत शक्तिशाली हुआ करते थे ।

सारोस पृथ्वी-चंद्रमा-सूर्य प्रणाली का एक 18-वर्षीय आवर्ती चक्र है। हर 6585 दिवस बाद पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य बिल्कुल समान स्थिति में होते हैं। दो एक जैसे चंद्रग्रहण ठीक 6585 दिनों के अंतराल मे होते है।